गुरुवार, 16 सितंबर 2010

chand

                                                                                                                        
रात भर चाँद चलता रहा
रात का पहरा ढलता रहा
सुबह के आगोश में आने को
चाँद का मन मचलता रहा




सुरमई साँझ से निकला चाँद
बदली की ओट में छुपता रहा
रात का आँचल ढलते ही
सुबह के साये में गुम हुआ




सूने से आकाश में चमके
यूँ पूनम का चाँद ....
यादों में चांदनी उतरती                 
करीब चला आया चाँद ... "The Frame" by Frida Kahlo

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010


एक आवाज काफी है , धड़कने रुकने के लिए
उसकी आहट काफी है , मूड बदलने के लिए

---- painting by Raja Ravi verma

शुक्रवार, 21 मई 2010

२२ /५/10



हवाओं के सुरों पर , सिहरन की तरह


गर्म फिजाओं में , ठिठुरन की तरह


सूरज की तपिश में , बर्फीली छुअन सा


दूर कहीं कोएल की , कूक सा

कानों में बजती , बाँसुरी सा

धड़कन में बजती , रागिनी सा

आगोश में भरकर , छूकर जो निकला

कहीं यह रोमांस तो नहीं .......


सोमवार, 10 मई 2010

मदर'स डे 9 may

लबो पे जिसके कभी बद्दुआ नहीं होती

वो माँ है जो कभी खफा नहीं होती

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

शुक्रवार, 7 मई 2010

5 May --Vigyan bhawan Delhi


जिन्दगी का फलक ,पेंटिंग बन जाये

रंग भरूँ इसमें खवाबो से

उडान हौसलों से ऊँची हो

पंख मिले अरमानो से .....

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

समय...sands of time..

समय मुट्ठी में बंधी रेत की तरह
फिसल रहा है हाथ से ...
समय बँधा क्यूं नही
रहता कुछ ख़ूबसूरत लम्हो की तरह ...
समय बहता रहता है दरिया की तरह
समय पलट कर नही आता
नही दिखता गुज़रे वक़्त की परछाई
दर्पण में पड़ी लकीरो की तरह ...
-16th-century portrait painted in oil on a poplar panel in Florence by Leonardo da Vinci
--visited Louvre museum Paris in march 2004

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

my favourite lines-- by Amrita pritam


चाँद सूरज जिस तरह
एक झील में उतरतें हैं
मैंने तुम्हे देखा नही
कुछ नक्श से उभरते हैं
वायदों को तोड़ती है
एक बार ही ये जिन्दगी
कुछ लोग हें मेरी तरह
फ़िर एतबार करते हें
Harmony - by P N Jha

http://blogvani.com/blogs/blog/16037

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

ख्वाब


रात भर डूबता उग़ता रहा इक
ख्वाब तुम्हारी आंखो से गिरा मेरी पलकों पे
सजा रात भर दूधिया चाँदनी में घुलता रहा एक ख़वाब......
पेड़ों के पीछे-चाँद के साथ साथ-
बादलों के संग ,चलता रहा एक ख़वाब.....
।ओस से गीला ठंड में दुबका,
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........

painting by -- Jatin Das

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

खवाब


रात भर डूबता उग़ता रहा इक ख्वाब
तुम्हारी आंखो से गिरा
मेरी पलकों पे सजा
रात भर दूधिया चाँदनी में
घुलता रहा एक ख़वाब......
पेड़ों के पीछे-चाँद के साथ साथ-
बादलों के संग चलता रहा एक ख़वाब......
ओस से गीला ठंड में दुबका,
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........

painting by Raja Ravi Verma.....

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

कन्या


कन्या जगत की जीवनदायिनी शक्ति
क्यूँ है शापित जनम से
जन्म लेने के अधिकार से वंचित क्यूँ है ?
प्रकृति का कोमल उपहार
भोर की उजली किरण
जीवन की प्रथम कलि
खिलने से पहले ही मुरझाने को विवश क्यूँ है ?
कन्या माँ ,बेटी, बहन है
जन्मदायिनी माँ की आंख का आंसू क्यूँ है ?

The painting is by Amrita Shergil.....three girls

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

शबनम



जब भी देखा , किसी मोड पर रूककर

तेरा ही साया मुझे आया है नजर
रास्ते अलग हुए ज़माने गुजर गए
मेरी तम्मनाओं पर है तेरा ही असर

चाँद को देखकर होता है गुमान
तुमने भी देखा होगा इसे नजर भरकर
फूलों की पंखुरी पर , ओस की बूंदे है
आँखों में नमी ठहरी है , शबनम बनकर

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

शबनम

जब भी देखा , किसी मोड पर रूककर



तेरा ही साया मुझे आया है नजर



रास्ते अलग हुए ज़माने गुजर गए



मेरी तम्मनाओं पर है तेरा ही असर



चाँद को देखकर होता है गुमान



तुमने भी देखा होगा इसे नजर भरकर



फूलों की पंखुरी पर , ओस की बूंदे है



आँखों में नमी ठहरी है , शबनम बनकर





बुधवार, 31 मार्च 2010

स्वर


तुहिन कणों में हास्य मुखर
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगों का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले है स्वर ...


बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमें भर दे उल्लास अमिट ...

http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/07/blog-post_11.html