
तुहिन कणों में हास्य मुखर
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगों का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले है स्वर ...
बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमें भर दे उल्लास अमिट ...
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगों का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले है स्वर ...
बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमें भर दे उल्लास अमिट ...
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/07/blog-post_11.html
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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