बुधवार, 31 मार्च 2010

स्वर


तुहिन कणों में हास्य मुखर
सौरभ से सुरभित हर मंजर
रंगों का फैला है जमघट
मूक प्रकृति को मिले है स्वर ...


बाहर कितना सौन्दर्य बिखरा
पर अंतर क्यों खाली है
काश कि ये सोन्दर्य सिमट
मुझमें भर दे उल्लास अमिट ...

http://indianwomanhasarrived2.blogspot.com/2008/07/blog-post_11.html

1 टिप्पणी: