शुक्रवार, 21 मई 2010

२२ /५/10



हवाओं के सुरों पर , सिहरन की तरह


गर्म फिजाओं में , ठिठुरन की तरह


सूरज की तपिश में , बर्फीली छुअन सा


दूर कहीं कोएल की , कूक सा

कानों में बजती , बाँसुरी सा

धड़कन में बजती , रागिनी सा

आगोश में भरकर , छूकर जो निकला

कहीं यह रोमांस तो नहीं .......


सोमवार, 10 मई 2010

मदर'स डे 9 may

लबो पे जिसके कभी बद्दुआ नहीं होती

वो माँ है जो कभी खफा नहीं होती

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है

माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है

शुक्रवार, 7 मई 2010

5 May --Vigyan bhawan Delhi


जिन्दगी का फलक ,पेंटिंग बन जाये

रंग भरूँ इसमें खवाबो से

उडान हौसलों से ऊँची हो

पंख मिले अरमानो से .....