काव्या - KAVYA
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
शबनम
जब भी देखा , किसी मोड पर रूककर
तेरा ही साया मुझे आया है नजर
रास्ते अलग हुए ज़माने गुजर गए
मेरी तम्मनाओं पर है तेरा ही असर
चाँद को देखकर होता है गुमान
तुमने भी देखा होगा इसे नजर भरकर
फूलों की पंखुरी पर , ओस की बूंदे है
आँखों में नमी ठहरी है , शबनम बनकर
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