शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

खवाब


रात भर डूबता उग़ता रहा इक ख्वाब
तुम्हारी आंखो से गिरा
मेरी पलकों पे सजा
रात भर दूधिया चाँदनी में
घुलता रहा एक ख़वाब......
पेड़ों के पीछे-चाँद के साथ साथ-
बादलों के संग चलता रहा एक ख़वाब......
ओस से गीला ठंड में दुबका,
सपनो की चादर बुनता रहा एक ख़वाब.........

painting by Raja Ravi Verma.....

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