शुक्रवार, 21 मई 2010

२२ /५/10



हवाओं के सुरों पर , सिहरन की तरह


गर्म फिजाओं में , ठिठुरन की तरह


सूरज की तपिश में , बर्फीली छुअन सा


दूर कहीं कोएल की , कूक सा

कानों में बजती , बाँसुरी सा

धड़कन में बजती , रागिनी सा

आगोश में भरकर , छूकर जो निकला

कहीं यह रोमांस तो नहीं .......


1 टिप्पणी: