सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

mahak

यादों   की  महक
ख्वाहिशों   की  खनक
बसंत  को  ख्वाहिश  हैं  बहार  की,
कुमुदिनी  को  इन्तजार   भ्रमर  का।

प्रक़ृति  में  उजास   है ,
जिन्दगी  फिर भी  उदास  है।

1 टिप्पणी: