काव्या - KAVYA
सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
mahak
यादों की महक
ख्वाहिशों की खनक
बसंत को ख्वाहिश हैं बहार की,
कुमुदिनी को इन्तजार भ्रमर का।
प्रक़ृति में उजास है ,
जिन्दगी फिर भी उदास है।
1 टिप्पणी:
deepa joshi
30 अप्रैल 2018 को 11:37 pm बजे
बहुत सुंदर
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